Saturday 1 November, 2008


ओ चुप रहने वाली,
तुम तक मेरा खामोश सलाम पहुँचे।
तुम खामोश हो, मैं खामोश हूँ, ज़िन्दगी खामोश है।
ये कलम कितनी खामोशी से चलती है अब। इसके अक्षरों में वो आवाज़ नहीं रही जो मेरे
दिल की ही प्रतिध्वनि थी। मेरे क़दम आजकल कितनी खामोशी से उठते हैं,
चलते हैं, थके-थके से। ये साँसें कितनी खामोशी से चलती हैं, ये दिल
कितनी खामोशी से धड़कता है आजकल।

जालिम, तू क्या चुप है, जीवन का संगीत ही थम गया है। हर साज चुप है,
हर आवाज़ चुप है। मैं गाता हूँ तो मेरी आवाज़ सिर्फ मेरे ही दिल तक
पहुंचती है, किसी तीर की तरह और उसे घायल कर देती है।
इन दिनों कभी चिड़िया चहकती है या कोयल गाती है तो मैं उन्हें डाँटता हूँ
कि अरे चुप हो जाओ तुम, क्योंकि मेरी कविता चुप है। जब कविता बोलेगी
तब ऐ चिड़िया तू चहकता, तब ऐ कोयल तू गाना। क्योंकि तुम्हारी खामोशी
में चिड़िया का चहकना या कोयल का गाना कानों में अमृत नहीं, विष
घोलता हुआ-सा लगता है। मगर तुम्हारी जिद देखकर लगता है कि न तुम मुझसे बोलोगी, चिड़िया
चहकेगी और न कोयल गायेगी। तुम तो खामोश रहोगी ही, तुम्हारी खामोशी
के चलते उन्हें भी खामोश रहना होगा।

ये खामोशी मुझे प्रिय होती, यदि सिर्फ तुम बोलती और सारी प्रकृति चुप
रहती। तुम्हारे स्वरों में प्रकृति के हर स्वर का अनुभव कर लेता मैं। मगर
सारी प्रकृति बोले और तुम चुप रहो, ये मुझे सहन नहीं। सारी प्रकृति की
खामोशी मुझे स्वीकार है, मगर तुम्हारी नहीं। तुम कुछ बोलो कवि। तुम्हारी
खामोशी मुझे भी कुछ बोलने से रोकती है। इससे पहले कि मैं हमेशा के
लिए खामोश हो जाऊँ, अपनी खामोशी को तोड़ लो ज़िन्दगी।


मेरी जाने ग़ज़ल
ज़िन्दगी की कठिन राह सामने है। चाहे मेरा साथ छोड़ दे, चाहे मेरे साथ
चल। फैसला तुझे ही करना है।

संभव है, जिस राह पर मैं चलूं, परिस्थितियों
के काँटों से भरी हो वह राह, मगर विश्वास रख, उन्हें मैं तेरे पाँवों में चुभने
न दूंगा। मेरा प्यार फुलों की पंखुरियां बन कर राह में बिछ जाएगा। संभव
है, जिस राह पर मैं चलूं, दुखों के सूर्य की तेज धूप का सामना करना पड़े
हमें, मगर विश्वास रख, उस धूप से तेरे कोमल पुष्प-से चेहरे को कुम्हलाने
नहीं दूँगा मैं। मेरा प्यार दामन बनकर तुझे अपने साये में ले लेगा।
यदि कभी मेरे साथ चलते-चलते तू थकने लगेगी तो मेरी बाँहें तेरा सहारा
बनेंगी और मेरी आँखों से निकलकर मेरे प्यार की बूंदें तुझे नयी ताज़गी देंगी। जिस राह पर मैं चलूं, उस पर शायद तुझे ऐश्वर्य और विलास न मिले,
मगर मेरा प्यार भरपूर मिलेगा। अब चुनाव तुझे करना है कि तू ऐश्वर्य का
बेजान सुख चाहती है या भावनाओं के समर्पण की अतुलनीय, अनुपम
अनुभूति चाहती है।

मैं मानता हूँ, प्यार पेट नहीं भरता। लेकिन भरा पेट प्यार की कमी को पूरा
नहीं कर सकता। और फिर इतना कमज़ोर तो मैं भी नहीं कि दो वक्त़ की
रोटी भी कमा न सकूं। बल्कि तू और तेरा प्यार मेरे साथ रहे तो सफलता
के कितने शिखर मेरे कदमों तले छोटे हो जाएंगे, कौन जानता है?
सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तुझे मुझसे कितना प्यार है?
किस सीमा तक पहुँचा है तेरा प्यार? मेरा प्यार तो असीम है, इसीलिए
हज़ारों आशंकाओं के बावजूद मैं अपनी राह पर साथ चलने के लिए बाँहें
फैलाये तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ, तुझे पुकार रहा हूँ। अब ये तेरी मर्जी है, तू
आये या न आये। मेरे न प्यार की इंतहा है और न इंतज़ार की -
तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लेंगे,
मगर ये रंज रहेगा कि ज़िन्दगी कम है।

3 comments:

रंजू भाटिया said...

तुम खामोश हो, मैं खामोश हूँ, ज़िन्दगी खामोश है।..पर कलम चलती रहे और लफ्ज़ सरगोशी करते रहे तो अच्छा है ..ब्लॉग का नाम पसंद आया .शुक्रिया

36solutions said...

धन्‍यवाद मेरे दोस्‍त । शायद यहां मेरे खत का जवाब हो ......... हा हा हा ।

sourabh sharma said...

इंतजार के लम्हात को कभी किसी ने इतनी संजीदा तरीके से नहीं कहा। अक्सर लोग इंतजार को पीड़ा का पर्याय समझते हैं। तेरी खुशबू से भरे खत मैं छिपाता कैसे, हर बार आपके ब्लाग में आने पर जगजीत भी याद आएँगे।